जय श्रीराम दोस्तों बस कुछ ही दिन में अयोध्या में प्रभु श्रीराम के मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हो जाएगी। एक ऐसा दिन जिसका इंतजार 500 सालों से किया जा रहा था। एक ऐसा दिन जिसके इंतजार में ना जाने कितनी पीढिया खत्म हो गयी। एक ऐसा दिन जिसकी लढाई में ना जाने कितने लोगों ने अपनी जान गंवा दी।
एक पल के लिए बस एक पल के लिए जरा सोचकर देखिए 16 वी शताब्दी में भी ऐसे लोग थे जिनका सपना था की वो अयोध्या में राम मंदिर देखे। 18 वीं शताब्दी में भी ऐसे लोग थे जो पहली बार राम मंदिर का हक पाने के लिए अदालत गए। आज से 150 साल पहले अयोध्या में लोगों ने राम मंदिर की लडाई में अपनी जान गवाई
ऐसे भी लोग थे जिन्होंने अपनी लाइफ के 50 साल राम मंदिर के लिए कोर्ट की लडाई में बिता दिये । आज बो हमारे बीच नहीं है और वो ये दिन देख भी नहीं पाए। और एक आप और हम है जो अपने जीते जी इसी जीवन काल में अयोध्या में भगवान श्रीराम का मंदिर देखने जा रहे हैं। उन प्रभु श्रीराम का मंदिर जिसे आज से 400 बयान्वे साल पहले 1528 में वहशी बाबर ने गिरवा दिया।
तो आज के इस वीडियो में हम राम मंदिर के इन पूरे 500 साल के संघर्ष की कहानी आपको सुनायेंगे ताकि आप ये जान सकें कि ये लडाई कितनी पुरानी है। इस संघर्ष के क्या मायने हैं, हमें सब बताएंगे ताकि आप ये जान सकें कि सच्चाई की लडाई कोई रातोंरात नहीं जीती जाती।
इसके संघर्ष 2 , 4 साल तक नहीं चलते बल्कि इसके लिए आपको सैकडो साल भी लडना पड सकता है। तो मेरी आप सब से यही रिक्वेस्ट है विनती है की इस वीडियो को पूरा देखिए और अपने सर्कल में हर जानने वाले इंसान से इस वीडियो को शेयर करिए ताकि वो ये जान पाए कि अयोध्या में भगवान श्रीराम का मंदिर बनने के मायने क्या है? शुरू करते हैं दोस्तों जय श्रीराम।
तो मित्रो हम सब जानते हैं कि बाबर ने साल 1528 में अयोध्या में भगवान श्रीराम का मंदिर गिरवाकर वहाँ मस्जिद का निर्माण करवाया था , लेकिन इसके पहले की बात कम लोग करते हैं और वो बात यह है कि भगवान श्रीराम के पुत्र कुश ने अयोध्या में श्रीराम जी का मंदिर बनवाया था । अकेले अयोध्या में सीताराम जी के 3000 मंदिर थे।
कहा जाता है की पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व इनमें से कई मंदिरों की हालत खराब होने लगी। उसी दौरान उज्जैन के राजा विक्रमादित्य अयोध्या आए और उन्होंने यहाँ के कई मंदिरों को फिर से ठीक करवाए। आने वाले कई सालों तक ये मंदिर यूं ही वहाँ बने रहे। फिर 21 अप्रैल 1526 को बाबर और इब्राहिम लोधी के बीच युद्ध होता हैं। 1528 तक बाबर की सेना अयोध्या पहुँच जाती है। कहा जाता है कि तभी बाबर के कहने पर उनके सेनापति मीर बाकी ने उस मंदिर को तुडबाकर उसकी जगह पर मस्जिद बनवाई जिसे बाद में बाबरी मस्जिद के नाम से जाना गया। इसके बाद 150 साल बीत जाते है।
कोई हलचल नहीं होती। यह वह दौर था जब भारत में मुगल शासन की जडे काफी गहरी थी। फिर साल 1717 यानी बाबरी मस्जिद बनने की तकरीबन 190 सालों बाद जयपुर के राजा जयसिंह द्वितीय कोशिश करते हैं कि मस्जिद और उसके आस पास वाली जगह उनको मिल जाए। वो जानते थे कि हिंदुओं के लिये उस जगह की क्या अहमियत है क्या
मायने हैं? क्या आस्था है? जय सिंह के उस वक्त के मुगल शासकों से संबंध भी ठीक थे मगर वो ऐसा नहीं कर पाते लेकिन वो मस्जिद के पास ही एक राम चबूतरा बनवा देते हैं ताकि हिंदू वहाँ पर पूजा कर पाए। यूरोपियन जियोग्राफर जोसेफ एफयेनयेर जो खुद 1766 से सत्रह सौ 71 के बीच इसी जगह पर थे, उन्होंने भी अपनी रिपोर्ट में रामचबूतरा होने की बात की तस्दीक की थी।
यह वो वक्त था जब मुसलमान मस्जिद के अंदर नमाज पढते थे और हिंदू बाहर राम चबूतरे पर पूजा किया करते थे। मगर मंदिर गिराए जाने के 250 सालों बाद भी हिंदू इसको भूले नहीं थे। यूं तो अयोध्या में भगवान श्रीराम के हजारों मंदिर थे।
मगर वो ये बात नहीं भुला पा रहे थे कि भगवान श्रीराम के जन्मस्थान की जगह मंदिर तोडकर मस्जिद कैसे बना देंगे?
1813 में पहली बार हिंदू संगठनों ने दावा किया कि बाबर ने 1528 में राम मंदिर तोडकर मस्जिद बनाई थी। माना जाता है कि फैजाबाद के अंग्रेज अधिकारियों ने भी मस्जिद में हिंदू मंदिर जैसी कलाकृतियों के मिलने का जिक्र अपनी रिपोर्ट में किया था।
पूर्व आईपीएस अधिकारी किशोर कुणाल ने अपनी किताब अयोध्या रिविजिटेड में इस वाक्य का जिक्र भी किया। इसके बाद 1838 में ब्रिटिश सर्वेअर मोंटगोमेरी मार्टिन ने एक रिपोर्ट दी कि मस्जिद में जो स्तंभ है वो मंदिर से ही लिये गए है। रिपोर्ट सामने आने के बाद काफी हंगामा हुआ। हिंदुओं के दावे के बाद से विवादित जमीन पर नमाज के साथ साथ पूजा भी होनी लगी।
1853 में अवध के नवाब वाजिद अली शाह के समय पहली बार अयोध्या में सांप्रदायिक हिंसा हुई। इसके बाद भी 1855 तक हिंदू और मुसलमान एक ही जगह पूजा और नमाज अता करते रहे। 1855 के बाद मुस्लिमों को मस्जिद में प्रवेश की इजाजत मिली, लेकिन हिंदू अंदर नहीं जा सकते थे।
ऐसे में हिंदुओं ने मस्जिद के मुख्य गुंबद से 150 फिट दूर बनाये राम चबूतरे पर पूजा करनी शुरू कर दी। इसके बाद 1885 में यानी आज से तकरीबन 138 साल पहले यह मामला अदालत पहुंचा। उस वक्त निर्मोही अखाडे के बाद रघुवर दास ने राम चबूतरे पर छतरी लगाने की अर्जी दी, जिसे अदालत ने ठुकरा दिया।
मगर इस एक घटना से हमें यह पता चलता है कि निर्मोही अखाडा कब से राम मंदिर की लडाई लड रहा है। इसके बाद 1934 में अयोध्या में फिर दंगे होते हैं और इस दौरान बाबरी मस्जिद की दीवार टूट जाती है, जिसे बाद में फिर बनवा दिया जाता है।
मगर वहाँ नमाज बंद हो जाती है। आप देख रहे है की ये वो दौर था जब देश पर अंग्रेजों की हुकूमत थी। उस वक्त की कांग्रेस के एजेंडे में भी कहीं राम मंदिर नहीं था ना उस वक्त का संघ इतना मजबूत था मगर देश की जनता प्रभु राम के भक्त बाबर के मस्जिद बनवाने के 400 साल बाद भी अपने हक की लडाई लड रहे थे। उस टाइम वो भी तब जब उन्हें देश में अपनी सरकार थी। ना मीडिया, आजाद था, धार्मिक संगठनों की कोई
लामबंदी थी। सिर्फ और सिर्फ आम रामभक्तों का वो जुनून था। वो भक्ति थी जो अपनी जान की बाजी लगाकर भी हर दिन श्री राम जी के मंदिर के लिए लडाई लड रहे थे। इस बीच आता है साल 1947 देश आजाद हो जाता है। उस वक्त तक मस्जिद सिर्फ शुक्रवार को ही खुलती थी और राम चबूतरे पर भगवान राम की मूर्ति थी।
जहाँ लोग पूजा करते थे, देश आजाद होते ही लोग ये मानने लगे थे कि हमें आजादी मिल गई है तो अब राम मंदिर बन ही जाएगा। मगर उस वक्त के किसी बडे कांग्रेसी नेता की बातों से ऐसा
नहीं लगता कि वो राम मंदिर बनाने या उसकी लडाई को लेकर गंभीर थे। उल्टे 1949 में कुछ ऐसा हुआ जिसने बहुत सारे लोगों को हैरान कर दिया।
30 दिसंबर 1949 की सुबह विवादित ढांचे के अंदर से घंटियों की आवाज आने लगती है। पता लगता है कि वहाँ श्री राम जी की पूजा हो रही है। हिंदू पक्ष दावा करता है कि बीते रात अचानक मंदिर में प्रभु राम की मूर्ति प्रकट हो गयी। मुस्लिम पक्ष कहता है की मूर्ति को रात के अंधेरे में जबरन रखा। घटना की जानकारी मिलने के बाद दोनों पक्ष के लोग भारी तादाद में वहाँ जुटने लगते हैं। मामला इतना बढ जाता है कि बात उस वक्त के प्रधानमंत्री।
जवाहरलाल नेहरू के पास चली जाती है। वो डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट केके नायर को आदेश देते हैं की मूर्ति को वहाँ से हटाकर पहले जैसी स्थिति बहाल की जाए जिसपर के के नायर हाथ खड़े कर देते हैं।
उनका कहना था कि यहाँ इतनी भीड है कि अगर मूर्ति हटाई गई तो स्थिति बेकाबू हो जाएगी। वैसे भी एक बार वहाँ मूर्ति रख दी गई है तो कोई पुजारी मूर्ति को हटाने के लिए तैयार नहीं होगा।
कहते हैं उसके बाद 27 दिसंबर को केके नायर के पास दूसरी चिट्ठी आती और उनसे फिर से वैसा ही करने के लिए कहा जाता है, जिसके जवाब में केके नायर इस्तीफा दे देते
और अपने इस्तीफे के साथ ही वह सरकार को यह सलाह देते हैं कि मूर्ति को हटाने की बजाय वहाँ जालीनुमा गेट लगा दिया जाए। कहते हैं नेहरू जी को ये बात पसंद आती है और वो ऐसा करने के लिए उनसे उन लोगों से कहते हैं और केके नायर का इस्तीफा मंजूर नहीं करते हैं।
इसके बाद 1950 में हिंदू महासभा के वकील गोपाल विशारद ने फैजाबाद जिला अदालत में अर्जी दाखिल कर रामलला की मूर्ति की पूजा का अधिकार देने की मांग की। इसके बाद अगले 35 सालों तक हिंदू पक्ष और सुन्नी वक्फ बोर्ड अपने अपने तरीके से उस जगह को अपने हवाले करने का दावा अदालत में करते हैं।
मगर कुछ होता नहीं फिर 1980 में बीजेपी के सामने आने के बाद राम मंदिर आंदोलन को लेकर चीजें बदलने लगती है। यह वो वक्त था जब संघ, विश्व हिंदू परिषद और बीजेपी सभी अपने अपने तरीके से राम मंदिर आंदोलन को तेज करने में लग जाते।
1984 में दिल्ली के विज्ञान भवन में एक कार्यक्रम करके ये लोग राम मंदिर के लिए सीतामढ़ी से अयोध्या तक रथ यात्रा निकालने का भी कार्यक्रम बनाते है। मगर 1984 में इंदिरा गाँधी जी की हत्या के बाद यह कार्यक्रम टाल देते हैं। फिर आता है साल 1986। तब कुछ ऐसा होता है जिसके बाद
राम मंदिर आंदोलन की पूरी दिशा ही बदल जाती है। आपको याद होगा शाहबानो केस में जब सुप्रीम कोर्ट शाह बानो के पति को उसे गुजारा भत्ता देने के लिए कहती है तो बहुत सारे मुस्लिम भडक जाते हैं और उसे अपने मजहब के खिलाफ इस फैसले को मानते।
उस वक्त के प्रधानमंत्री राजीव गाँधी मुसलमानों को खुश करने के लिए संसद में कानून लाकर सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को पलट देते हैं। राजीव गाँधी जी के इस कदम से फिर हिंदू नाराज हो जाता है। वो इसे मुस्लिम तुष्टिकरण मानते हैं। इसके बाद राजीव गाँधी जी हिंदुओं को खुश करने के लिए बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाकर वहाँ पूजा अर्चना शुरू करवा देते है ।
अब राजीव सरकार के इस फैसले से मुस्लिम नाराज हो जाते हैं और 6 फरवरी 1986 को मुस्लिम लीडर्स मिलते हैं और बाबरी मस्जिद ऐक्शन कमिटी बना देते है। पहले इसके बाद के सालों की डिटेल में मैं ज्यादा नहीं जाऊंगा। मगर जो दर्शक हमारे नहीं जानते उन्हें बता दूँ कि इसके बाद के सालों में लालकृष्ण आडवाणी सोमनाथ से अयोध्या के लिए 10,000 किलोमीटर की।
रथयात्रा निकालते है । रथ यात्रा के दौरान बिहार के समस्तीपुर में आडवाणी जी को गिरफ्तार कर लिया जाता है। फिर जीस दिन अयोध्या में रथ यात्रा का समापन होना था। उस दिन बहुत बडी संख्या में कारसेवक अयोध्या पहुँचकर विवादित ढांचे पर झंडा फहरा देते। भीड को काबू करने की कोशिश में उस वक्त की मुलायम सरकार कारसेवकों पर गोलियां चलवा देती है, जिसमें कई कारसेवक शहीद हो जाते हैं। इसके बाद आता है वो दिन जिसे बहुत सारे लोग शौर्य दिवस
और बहुत से लोग काला दिवस के तौर पर मनाते तारीख थी 6 दिसंबर 1992 उस दिन 2,00,000 कारसेवक अयोध्या पहुँच जाते हैं। उस वक्त कल्याण सिंह यूपी के मुख्यमंत्री थे और पीवी नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री कहते हैं कारसेवकों के वहाँ पहुंचने से पहले कल्याण सिंह ने अदालत को यह भरोसा दिया था कि वह ढांचे को कोई नुकसान नहीं होने दें।
साथ ही यह भी कहा जाता है कि कल्याण सिंह ने पुलिस को भी आदेश दिए थे कि वो भीड पर गोली न चलाए।
लेकिन इतने सारे लोगों के वहाँ पहुंचने के बाद वही हुआ जो होना था। 6 दिसंबर 1992 को दोपहर 1:55 पर पहले एक गुंबद गिराया गया। फिर डेढ घंटे बाद दोपहर 3:30 बजे के करीब दूसरा गुंबद गिराया गया और शाम 5:00 बजे तक तीनों गुंबद गिरा दिए गए। इस घटना के महज डेढ घंटे बाद यूपी में राष्ट्रपति शासन लगा दिया।
कल्याण सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद हुए दंगों में तकरीबन 1000 लोगों ने अपनी जाने गवाई मुंबई में हुए सांप्रदायिक दंगों में भी 900 लोगों ने अपनी जान गंवाई।
इसके 7 साल बाद तक अदालत में इस मामले को लेकर शांति छाई रहीं। मगर 90 के दशक में बीजेपी के दोबारा केंद्र में आने के बाद तमाम हिंदू संगठन राम मंदिर आंदोलन को लेकर फिर से अति सक्रिय हो गए। पहले देशभर में चल रहे मामलों को एक जगह लाया गया।
बाद के सालों में आर्किलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया को इस मामले की जांच करने को कहा गया ताकि पता लगाया जा सके कि वहाँ पहले क्या था। आर्किलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने अपनी रिपोर्ट में यह साफ कह दिया कि जीस जगह विवादित ढांचा था। उसके नीचे मिले अवशेषों से यह साबित होता है कि वहाँ पहले हिंदू मंदिर थे
आर्किलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट ऐसा पहला साइंटिफिक फैक्ट था, जिसके बाद यह सच में साबित हो रहा था कि वहाँ हिंदू मंदिर ही था। आर्किलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की इसी रिपोर्ट को बेस बनाते हुए अदालत ने विवादित जमीन को राम जन्मभूमि ट्रस्ट, निर्मोही अखाडा और सुन्नी वक्फ बोर्ड में बराबर बांट दिया।
मगर तीनों ही पक्ष अदालत के इस फैसले से सहमत नहीं होते। जिसके बाद 2011 में यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचता है। मगर वहाँ भी सात सालों तक इसमें कोई सुनवाई नहीं होती। एक मैडिसन पैनल बनाकर आपसी रजामंदी से मामले का हल निकालने की कोशिश होती है और जब उससे भी कोई फैसला नहीं होता तो सुप्रीम कोर्ट
मामले से जुडे सारे दस्तावेजों का अंग्रेजी में ट्रांसलेशन करने को कहता हैं। फिर अगस्त 2019 में मामले से जुडे सभी पक्षों की सुनवाई पूरी हो जाती है और उसी साल 9 नवंबर 2019 में सुप्रीम कोर्ट के फैसला सुनाती है कि विवादित जमीन राम जन्मभूमि ट्रस्ट को दे दी जाये
फिर उसके बाद 5 फरवरी 2020 ट्रस्ट का गठन होता है और मंदिर निर्माण शुरू होता है।
मित्रो 1528 में राम मंदिर गिराने के 400 बयान्वे सालों बाद उसी अयोध्या में प्रभु श्रीराम की जन्मभूमि पर फिर से उनके मंदिर का निर्माण होने वाला।
मैं जानता हूँ ये सारी कहानी बहुत से लोगों के लिए लंबी हो गयी होगी। हो सकता है बीच में बहुतों को लगा होगा कि विडिओ बंद कर दें। लेकिन यकीन मानिए दोस्तों इस वीडियो को बनाने का सिर्फ और सिर्फ एक मकसद था की हम सभी लोग राम मंदिर के संघर्ष की पूरी कहानी जान पाए।
हम ये जान पाए कि सच्चाई की लडाई में संघर्ष सिर्फ साल 2 साल का ही नहीं बल्कि सालों का होता है। वरना कितने लोगों को पता होगा कि जिन प्रभु राम के मंदिर को लेकर आज हम गदगद हैं, उन्हीं प्रभु श्रीराम के मंदिर को लेकर आज से 250 साल पहले राजा जयसिंह भी परेशान थे । जिस राम मंदिर के लिए हम बेचैन हैं।
प्रभु श्रीराम के उसी मंदिर के लिए आज से 175 साल पहले अयोध्या में हुए दंगों में लोगों ने अपनी जान गंवाई थी। जीस राम मंदिर के लिए हम इतने उत्सुक हैं जिसकी कानूनी लडाई जीतकर हम इतने गदगद हैं। उसी राम मंदिर के लिए आज से 150 साल पहले 1885 में महंत रघुबर दास ने अदालत में पहली अर्जी लगाई थी
और आज जब प्रभु श्रीराम का यह भव्य मंदिर बनकर तैयार है तो हम ईश्वर से यही प्रार्थना करते हैं कि महंत रघुबर दास से लेकर अयोध्या के उन दंगों में मारे गए लोगों तक गोधरा की ट्रेन में जिंदा जलाये गए संतों से लेकर भागलपुर, मुंबई और देश के किसी भी कोने में इस लड़ाई के लिए शहीद हुए तमाम भक्तों तक भी इस विजय का संदेश जरूर पहुंचाया जाए ताकि वो भी ये जान सकें कि उनका बलिदान व्यर्थ नहीं गया। उनकी तपस्या जाया नहीं गयी और आपसे भी मेरा यही अनुरोध है।
रिक्वेस्ट है कि 22 जनवरी को जब आप अपने घर में भगवान श्रीराम के नाम का एक दिया जलाएँ तो उन तमाम भक्तों को भी जरूर याद करें जिन्होंने इस सपने को सच करने में अपने जीवन की आहुति दी।
बाकी अभी के लिए इतना ही उम्मीद करते हैं। राम मंदिर के संघर्ष की पूरी कहानी आप तक पहुंची होगी और मैं चाहता हूँ कि आप इस कहानी को और भी लोगों तक पहचाये । ये वीडियो अगर आपको सही लगी हो तो प्लीज इसे और भी लोगों तक जरूर शेयर करे। हमारे चैनल को सब्सक्राइब जरूर करिएगा। फेसबुक पे देख रहे हैं, तो जरूर लाइक करेगा और कॉमेंट्स सेक्शन में जय श्रीराम जरूर लिखें। जय श्री राम